पड़ोस के घर में एक परिवार रहने आया था। उसमें दादा जी की उम्र के एक व्यक्ति और उनकी पत्नी रहत थीं। वह दादी जी लंगड़ा कर चलते थे और कड़क स्वभाव के थे। वह अपने साथ बहुत से गमले लाए थे, जिनमें रंग-बिरंगे फूलों वाले पौधे थे। वह अपने पौधों की देखभाल बच्चों की तरह करते थे। आसपास के बच्चों को उनके फूल बहुत भाते थे। बच्चों को फूल तोड़ने की इच्छा होती, लेकिन उन दादा जी का कड़क स्वभाव देखकर बच्चे उनसे दूर ही रहते थे। एक दिन पौधों के पास किसी को न देख सोमेश अपने को रोक नहीं पाया और दो फूल तोड़ लिए। तभी वहां दादा जी आ गए और उसका हाथ पकड़कर बोले, यह क्या किया तुमने? आगे से ऐसी गलती मत करना, वरना मैं तुम्हारे पापा से शिकायत कर दूंगा। अब जाओ यहां से!

इस घटना के बाद से बच्चों ने दादा जी का नाम लंगड़दीन रख दिया और उन्हें सामने देखकर वे गाना गाने लगते थे - लंगड़दीन बजाए बीन...। पतंग उड़ाने के दिन आ गए थे। बाजार रंग-बिरंगी पतंगों से भरा पड़ा था। रास्ता चलते बच्चे बड़ी हसरत से पतंगों को देखते थे, पर अभी स्कूल खुले हुए थे, तो उन्हें पतंग उड़ाने की इजाजत नहीं मिली थी। जैसे-जैसे पतंग उड़ाने के दिन नजदीक आ रहे थे, दादा जी का दखल बढ़ने लगा था। वह चलते-फिरते बच्चों को नसीहतें देने लगे थे। अकसर वे बच्चों से कहा करते, ‘सुनो आराम से पतंग उड़ाना, लूटने के लिए पीछे मत दौड़ना, गिर गए तो जान भी जा सकती है। छड़ से पतंग लूटने की कोशिश बिल्कुल मत करना।’

कुछ बच्चे ये नसीहतें सुनकर दादा जी से चिढ़ने लगे थे। स्कूल की छुट्टी होते ही बच्चे पतंग उड़ाने की फिराक में रहते थे। बहुत से बच्चों के मम्मी-पापा सुबह काम पर निकल जाते थे। ऐसे में स्कूल से आकर उन्हें पतंग उड़ाने का मौका मिल जाता था। इसी तरह एक दिन अमित के मम्मी-पापा काम पर गए हुए थे। दादी गांव में थीं। वह अपने कुछ दोस्तों के साथ छत पर पहुंच गया। सब बच्चों के हाथ में अपनी-अपनी पतंगें और चरक थी। सभी बड़ी तल्लीनता से पतंग उड़ा रहे थे। तभी बच्चों को बड़ी सुंदर-सी पतंग नजर आई, तो वे अपनी पतंग उड़ाने के बजाय उस पतंग से पेच लड़ाकर उसे काटने की कोशिश करने लगे। देखते ही देखते वह पतंग कटकर नीचे की तरफ आने लगी और बच्चे अपनी पतंग हवा में ही छोड़कर उसे पकड़ने की कोशिश करने लगे। एक बच्चे ने लोहे का सरिया उठाना चाहा, लेकिन दादा जी की बात याद आते ही उसने यह ख्याल दिल से निकाल दिया। उस समय बच्चे किसी भी तरह पतंग लूट लेना चाहते थे। तभी अचानक वहां एक हादसा हो गया। अमित पतंग के पीछे भागते-भागते छत से गिर गया था। बच्चे मदद के लिए चिल्लाने लगे। शोर सुनकर दादा जी वहां आ गए। उनके पास अमित के माता-पिता का फोन नंबर भी नहीं था। बिना देरी किए बेहोश पड़े अमित को वह तुरंत डॉंक्टर के पास लेकर पहुंचे। उसे काफी चोट लगी थी और जगह-जगह से खून बह रहा था। अमित को डॉंक्टर को सौंपकर वह हताश से बैठे हुए थे। तब उन्हें वहां पहुंचे बच्चों ने बताया कि अमित पतंग लूटने के चक्कर में छत से गिर गया था। कुछ देर बाद डॉंक्टर आए और उन्होंने दादा जी से कहा, ‘अच्छा हुआ कि आप समय से बच्चे को अस्पताल ले आए, नहीं तो ज्यादा खून बह सकता था। उम्मीद है कि वह जल्द ही होश में आ जाएगा। काफी चोट आई है और पैर में फ्रेक्चर हुआ है, जिसे ठीक होने में वक्त लगेगा।’

शाम को अमित के माता-पिता के पहुंचने पर अस्पताल पहुंचे बच्चे दादा जी के साथ लौटने लगे। तब वे उन्हें लंगड़दीन के बजाय दादा जी पुकार रहे थे। इस पर दादा जी बोले, ‘मुझे पता है कि तुम लोग मुझे लंगड़दीन कहते हो।’ इस पर बच्चों ने शर्मिदा होकर सॉरी बोला। तब दादा जी ने उन्हें बताया, ‘जब मैं पंद्रह वर्ष का था, तब पतंग लूटने के चक्कर में मैं भी छत से गिर गया था और लंगड़ा हो गया था। इसीलिए मैं तुम्हें सावधानी से पतंग उड़ाने के लिए समझाता था, लेकिन मेरी कोशिश बेकार गई।’ तब बच्चों ने एक बार फिर माफी मांगी और बोले, ‘दादा जी, हमें माफ कर दीजिए, अब हम आपकी बात मानेंगे।’

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किसी जंगल में रह कर एक संन्यासी तपस्या करता था। जंगल के जानवर उस संन्यासी के पास प्रवचन सुनने आया करते थे। वे संन्यासी को चारों ओर से घेर लेते और वह जानवरों को अच्छा जीवन बिताने का उपदेश देता।

उसी जंगल में एक छोटा-सा चूहा भी रहता था। वह भी रोज संन्यासी का प्रवचन सुनने आता था।

एक दिन वह जंगल में यहां-वहां भटकता साधु को भेंट देने के लिए कुछ ढूंढ़ रहा था कि एक बड़ी बिल्ली ने उस पर हमला बोल दिया। वह बिल्ली झाडियों में छिप कर चूहे पर निगाह रखे थी।

चूहा बेहद डर गया और भाग निकला सीधे संन्यासी के आश्रम की ओर।

वहां जाकर चूहा संन्यासी के पैरों में पड़ गया और डरी आवाज में उसे अपनी आपबीती कह सुनाई।

इसी बीच बिल्ली भी वहां आ पहुंची। उसने संन्यासी से आग्रह किया कि उसे उसका शिकार ले जाने दे।

संन्यासी बेचारा धर्मसंकट में पड़ गया। उसने एक क्षण सोचा और फिर अपनी दिव्य शक्ति से चूहे को एक बड़ी बिल्ली में बदल दिया।
अपने से बड़ी बिल्ली को सामने देख पहली बिल्ली वहां से भाग निकली।

अब चूहा चिंतामुक्त था। वह अब किसी दूसरी बड़ी बिल्ली की भांति जंगल में विचरण करता। दूसरे जानवरों को डराने के लिए वह जोर से गुर्राना भी सीख गया था। बिल्लियों से बदला लेने के लिए वह उनसे भिड़ जाता। बहुत-सी बिल्लियां उसने मार डाली थीं।

लेकिन चूहे का यह चिंतामुक्त जीवन लंबा नहीं चला।
एक दिन एक लोमड़ी ने उस पर झपट्टा मारा। अब एक नई समस्या उठ खड़ी हुई। उसने यह तो कभी सोचा ही नहीं था कि बिल्ली से बड़े और हिंसक जानवर भी जंगल में मौजूद हैं, जो पलभर में उसे चीर-फाड़ सकते हैं।

वह फिर अपनी जान बचाने के लिए दौड़ा। किसी तरह लोमड़ी से बच कर वह फिर संन्यासी के आश्रम में जा पहुंचा। लोमड़ी भी उसका पीछा करते हुए वहां पहुंच चुकी थी। अब दोनों संन्यासी के सामने खड़े थे।

संन्यासी ने चूहे की परेशानी देख उसे बड़ी-सी लोमड़ी में बदल दिया। अब अपने से बड़ी लोमड़ी सामने देख पहली लोमड़ी वहां से भाग निकली।
बड़ी लोमड़ी का आकार पाकर चूहा फिर चिंतामुक्त हो गया और जंगल में घूमने लगा। लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा नहीं टिक पाई।

एक दिन जब वह यूं ही जंगल में घूम रहा था कि एक शेर उस पर झपट पड़ा। किसी तरह चूहे ने अपनी जान बचाई और पहले की तरह भाग निकला सीधा संन्यासी के आश्रम की ओर।
संन्यासी को फिर चूहे पर दया आ गयी और उसने उसे शेर के रूप में बदल दिया।

संन्यासी यह सब करते समय यह सोचता था कि चूहा उसका पुराना शिष्य है-छोटा सा जीव है। हिंसक जानवरों से उसकी रक्षा करना उसका कर्तव्य है।

शेर का रूप लेकर चूहा जंगल में बिना किसी डर के घूमने लगा। बिना किसी वजह ही उसने जंगल के बहुत से जानवरों को मार डाला। शेर का रूप पाने के बाद चूहा जंगल का सबसे शक्तिशाली जीव बन गया था। वह राजा की तरह बर्ताव करता और वैसे ही आदेश देता जैसे कोई राजा देता है।

अब उसे एक ही चिंता दिन-रात लगी रहती और वह चिंता थी संन्यासी कि दिव्य शक्तियों को लेकर।
वह सोचता था कि तब क्या होगा, जब संन्यासी कारण या अकारण उसे पहले जैसे चूहे के रूप में बदल देगा। वह जितना सोचता, चिंता उतनी ही बढ़ती जाती।
आखिरकार एक दिन वह संन्यासी के पास आकर जोर से दहाड़ा और बोला, ‘मैं भूखा हूं, अब मैं तुम्हें खाऊंगा ताकि वे सभी दिव्य शक्तियां मुझमें समा जाएं, जो अभी तुम्हारे पास हैं। मुझे आज्ञा दें कि आपको मार सकूं।’

संन्यासी कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उसके साथ ऐसा हो सकता है। जिस चूहे का रूप बदल कर वह उसकी जान की रक्षा कर रहा है, वही एक दिन उसकी जान का प्यासा हो जाएगा।
चूहे के ये शब्द सुन कर संन्यासी को बहुत गुस्सा आया और उसने तुरन्त ही उसे फिर से चूहा बना दिया।
अब चूहे को अपनी गलती का अनुभव हुआ। उसने अपने बुरे बर्ताव के लिए संन्यासी से क्षमा मांगते हुए उसे फिर से शेर बना देने को कहा, लेकिन संन्यासी ने उसे लाठी से पीट कर वहां से भगा दिया।
(पंचतंत्र की नैतिक कथाएं से साभार)

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